1.आयुर्वेद चिकित्सा
आयुर्वेद चिकित्सा प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है । आयुर्वेद शब्द दो शब्द आयु और वेद से मिलकर बना है । जो शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाये रखने पर आधारित है । आयुर्वेद चिकित्सा का विकास हजारों सालों पहले भारतीय ऋषियों द्वारा किया गया था । आयुर्वेद चिकित्सा मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप में है । सही शब्दों में कहें तो मानव जीवन का प्रकृति के साथ संतुलन बैठकर जीने का विज्ञान ही आयुर्वेद चिकित्सा है । प्रकृति के साथ असंतुलन से विकार उत्पन्न होंगे। और, आयुर्वेद के साथ समग्र कल्याण प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि यह रोकथाम पर जोर देता है । आयुर्वेद चिकित्सा में आहार परिवर्तन, जड़ी-बूटियाँ, मालिश, योग और ध्यान शामिल हैं।
2. आयुर्वेद चिकित्सा के सिद्धांत
आयुर्वेद चिकित्सा के मूल सिद्धांत के अनुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड को पाँच तत्वों से बना हुआ मानते हैं: अंतरिक्ष, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। ये पांच तत्व हर चीज़ में मौजूद हैं, जिसमें मानव शरीर भी शामिल है। ये पांच तत्व मिलकर तीन दोष या त्रयोगुण बनाते हैं: वात (अंतरिक्ष और वायु), पित्त (अग्नि और जल) और कफ (जल और पृथ्वी)। जब ये तीनों गुण संतुलन में होते है तो शरीर को पूर्ण स्वस्थ कहा जाता है । इन तीनों गुणों के असंतुलन की अवस्था को दोष या रोग कहा जाता है । जब शरीर बिमारियों से ग्रस्त होता है तो वह मानव को विनाश की ओर ले जाता है।
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वात प्रकृति
वात शब्द का अर्थ है हवा की तरह बहना । वात मन और शरीर में सभी गति से संबंधित शारीरिक कार्यों को नियंत्रित करता है। यह रक्त प्रवाह, अपशिष्टों की निकासी, श्वास और मस्तिष्क में विचारों की गति को नियंत्रित करता है। वात शुष्क, ठंडा, हल्का, गतिशील, परिवर्तनशील, सूक्ष्म, खुरदरा और तेज होता है।
वात प्रकृति के लक्षण
- शरीर बहुत छोटा या बहुत लम्बा hona
- शरीर में सूखापन रहना
- दुबला और पतला शरीर
- शरीर का वजन घट-बढ़ेगा
- सीखने में शीघ्रता, केवल सतही ज्ञान
- कमज़ोर याददाश्त
- चिंता और अवसाद
- कुछ करने के बाद सोचता है
- अज्ञात चीजों से डरना
- ज्यादा बातें करना
- जोड़ों से “खटखटाने” जैसी ध्वनि के साथ उभरे हुए “गांठदार” जोड़
- पलकें झपकाने में तेज़ी
- व्यायाम में अच्छा
- अनियमित क्रियाकलाप
- मूडी स्वभाव
पित्त प्रकृति
पित्त दोष दो तत्वों अग्नि और जल के मिलान से बनता है। ऊर्जा उत्पादन, चयापचय और शारीरिक तापमान से संबंधित सभी शारीरिक प्रक्रियाएं पित्त दोष ही नियंत्रित होती हैं। अर्थात भोजन का पाचन कर शरीर के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन करना और खपत करना जैसे महत्वपूर्ण कार्य पित्त दोष के द्वारा ही नियंत्रित होते हैं।
पित्त प्रकृति के लक्षण
- भावनाओं में ज्यासा बहना
- सीखने में निपुण होना
- चीजों को समझने के लिए तर्क और विवेक
- तीव्र स्मृति,
- चिंता और तीव्र भावनाएं
- करने से पहले सब कुछ गणना करता है
- आक्रामक और ज्यादातर व्यवस्थित
- अनियंत्रित क्रोध आना
- दुःखों का सामना नहीं कर सकते
- मध्यम और मध्यम शरीर प्रकार
- त्वचा का लाल और ताम्रवर्णी रंग
- मध्यम शारीरिक वजन
- सामान्य स्थिति में शरीर का वजन इष्टतम होगा
- त्वचा पर तिल, ब्लैकहेड्स
- गतिविधियों में तीक्ष्णता
- दांतों का पीलापन
- विलासिता का शौकीन
- सटीक और गणनापरक गतिविधियाँ
- सिर पर कम बाल
- कम उम्र में ही बालों का सफ़ेद होना
- दरिद्रता
- शरीर के अंगों और पसीने में दुर्गंध
कफ प्रकृति
कफ मुख्य रूप से दो घटको पृथ्वी और जल से मिलकर बना है। यह भारी, धीमा, ठंडा, चिकना, कोमल, नाजुक, मोटा, स्थिर, स्थूल और बादलदार होता है। कफ सभी चीजों को संरचना और मजबूती प्रदान करता है। यह शरीर को बनाए रखने के लिए आवश्यक सामंजस्य प्रदान करता है। कफ सभी कोशिकाओं और ऊतकों को नमी प्रदान करता है, जोड़ों को चिकनाई देता है, त्वचा को संतृप्त करता है।
कफ प्रकृति के लक्षण
- बड़ा, चौड़ा शरीर ढांचा
- मध्यम भूख
- गहरी और अच्छी नींद
- सुखद एवं गहरी आवाज
- मध्यम पसीना आना
- अच्छी सहनशक्ति
- कम प्यास
- शांत एवं विनम्र स्वभाव
- वजन बढ़ने की प्रवृत्ति
- चिकनी एवं चमकदार त्वचा
3.आयुर्वेद चिकित्सा का महत्व
- आयुर्वेद व्यक्ति के जीवन, सही सोच, आहार, जीवनशैली और जड़ी-बूटियों के उपयोग में संतुलन पर बारीकी से ध्यान देकर स्वस्थ जीवन प्रोत्साहित करता है।
- यह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक विशेषताओं का एक व्यक्तिगत संयोजन
- स्वास्थ्य संबंधी कठिनाइयों के उपचार में, यह प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत संरचना को ध्यान में रखता है।